Friday 29 December 2017

कैंसर को मात कैसे दे ?

पपीते के पत्तो की चाय किसी भी स्टेज के कैंसर को सिर्फ 60 से 90 दिनों में कर देगी जड़ से खत्म,

पपीते के पत्ते 3rd और 4th स्टेज के कैंसर को सिर्फ 35 से 90 दिन में सही कर सकते हैं।

अभी तक हम लोगों ने सिर्फ पपीते के पत्तों को बहुत ही सीमित तरीके से उपयोग किया होगा, बहरहाल प्लेटलेट्स के कम हो जाने पर या त्वचा सम्बन्धी या कोई और छोटा मोटा प्रयोग, मगर आज जो हम आपको बताने जा रहें हैं, ये वाकई आपको चौंका देगा, आप सिर्फ 5 हफ्तों में कैंसर जैसी भयंकर रोग को जड़ से ख़त्म कर सकते हैं।

ये प्रकृति की शक्ति है और बलबीर सिंह शेखावत जी की स्टडी है जो वर्तमान में as a Govt. Pharmacist अपनी सेवाएँ सीकर जिले में दे रहें हैं।

आपके लिए नित नवीन जानकारी कई प्रकार के वैज्ञानिक शोधों से पता लगा है कि पपीता के सभी भागों जैसे फल, तना, बीज, पत्तिया, जड़ सभी के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसके वृद्धि को रोकने की क्षमता पाई जाती है।

विशेषकर पपीता की पत्तियों के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसकी वृद्धि को रोकने का गुण अत्याधिक पाया जाता है। तो आइये जानते हैं उन्ही से।

University of florida ( 2010) और International doctors and researchers from US and japan में हुए शोधो से पता चला है की पपीता के पत्तो में कैंसर कोशिका को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है।

Nam Dang MD, Phd जो कि एक शोधकर्ता है, के अनुसार पपीता की पत्तियां डायरेक्ट कैंसर को खत्म कर सकती है, उनके अनुसार पपीता कि पत्तिया लगभग 10 प्रकार के कैंसर को खत्म कर सकती है जिनमे मुख्य है।

breast cancer, lung cancer, liver cancer, pancreatic cancer, cervix cancer, इसमें जितनी ज्यादा मात्रा पपीता के पत्तियों की बढ़ाई गयी है, उतना ही अच्छा परिणाम मिला है, अगर पपीता की पत्तिया कैंसर को खत्म नहीं कर सकती है लेकिन कैंसर की प्रोग्रेस को जरुर रोक देती है।।

तो आइये जाने पपीता की पत्तिया कैंसर को कैसे खत्म करती है?

1. पपीता कैंसर रोधी अणु Th1 cytokines की उत्पादन को ब़ढाता है जो की इम्यून system को शक्ति प्रदान करता है जिससे कैंसर कोशिका को खत्म किया जाता है।

2. पपीता की पत्तियों में papain नमक एक प्रोटीन को तोड़ने (proteolytic) वाला एंजाइम पाया जाता है जो कैंसर कोशिका पर मौजूद प्रोटीन के आवरण को तोड़ देता है जिससे कैंसर कोशिका शरीर में बचा रहना मुश्किल हो जाता है।
Papain blood में जाकर macrophages को उतेजित करता है जो immune system को उतेजित करके कैंसर कोशिका को नष्ट करना शुरू करती है, chemotheraphy / radiotheraphy और पपीता की पत्तियों के द्वारा ट्रीटमेंट में ये फर्क है कि chemotheraphy में immune system को दबाया जाता है जबकि पपीता immune system को उतेजित करता है, chemotheraphy और radiotheraphy में नार्मल कोशिका भी प्रभावित होती है पपीता सोर्फ़ कैंसर कोशिका को नष्ट करता है।

सबसे बड़ी बात के कैंसर के इलाज में पपीता का कोई side effect भी नहीं है।।

कैंसर में पपीते के सेवन की विधि :
कैंसर में सबसे बढ़िया है पपीते की चाय। दिन में 3 से 4 बार पपीते की चाय बनायें, ये आपके लिए बहुत फायदेमंद होने वाली है। अब आइये जाने लेते हैं पपीते की चाय बनाने की विधि।

1. 5 से 7 पपीता के पत्तो को पहले धूप में अच्छी तरह सुखा ले फिर उसको छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ लो आप 500 ml पानी में कुछ पपीता के सूखे हुए पत्ते डाल कर अच्छी तरह उबालें।
इतना उबाले के ये आधा रह जाए। इसको आप 125 ml करके दिन में दो बार पिए। और अगर ज्यादा बनाया है तो इसको आप दिन में 3 से 4 बार पियें। बाकी बचे हुए लिक्विड को फ्रीज में स्टोर का दे जरुरत पड़ने पर इस्तेमाल कर ले। और ध्यान रहे के इसको दोबारा गर्म मत करें।

2. पपीते के 7 ताज़े पत्ते लें इनको अच्छे से हाथ से मसल लें। अभी इसको 1 Liter पानी में डालकर उबालें, जब यह 250 ml। रह जाए तो इसको छान कर 125 ml. करके दो बार में अर्थात सुबह और शाम को पी लें। यही प्रयोग आप दिन में 3 से 4 बार भी कर सकते हैं।

पपीते के पत्तों का जितना अधिक प्रयोग आप करेंगे उतना ही जल्दी आपको असर मिलेगा। और ये चाय पीने के आधे से एक घंटे तक आपको कुछ भी खाना पीना नहीं है।

कब तक करें ये प्रयोग वैसे तो ये प्रयोग आपको 5 हफ़्तों में अपना रिजल्ट दिखा देगा, फिर भी हम आपको इसे 3 महीने तक इस्तेमाल करने का निर्देश देंगे। और ये जिन लोगों का अनुभूत किया है उन लोगों ने उन लोगों को भी सही किया है, जिनकी कैंसर में तीसरी और चौथी स्टेज थी।

Thursday 28 December 2017

अगर रेल यात्रा में आपका सामान चोरी हो जाए, तो ?

R.T.I. 🚊उपयोगी जानकारी 🚊

लखनऊ से जबलपुर लौटते वक्त ए.सी. कोच में जबलपुर की एक महिला प्रोफेसर का पर्स चोरी हो गया, जिसमें लाखों के जेवर और रुपए थे। अब तक उस सामान का पता नहीं लग सका है। चोरी गए सामान की कीमत अब रेलवे को देना होगी। 

सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने रेल यात्रियों को यह सुविधा दिला दी है।इसके लिए पीड़ित यात्री को उपभोक्ता फोरम में रेलवे की सेवा में कमी का मामला दायर करना होगा। 

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के मुताबिक रिजर्व कोच में अनाधिकृत व्यक्ति का प्रवेश रोकना टी.टी.ई. की जिम्मेदारी है, और अगर वह इसमें नाकाम रहता है, तो रेलवे सेवा में खामी मानी जाएगी। 

कैसे मिला अधिकार: फरवरी 2014 में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने ट्रेन से चोरी गए महिला डॉक्टर के सामान की राशि का भुगतान रेलवे को करने का आदेश दिया। रेलवे ने इस पर दलील दी की "ये मामला रेलवे क्लेम टिब्यूनल में ही सुना जा सकता है।" जबकि यात्री के वकील के मुताबिक टिब्यूनल में सिर्फ रेलवे में बुक पार्सल के मामलों को ही सुना जाता है। 
न्यायमूर्ति सी.के. प्रसाद और पिनाकी चंद्र घोष की पीठ ने 17 साल पुराने इस मामले में रेलवे की दलील को खारिज कर दिया और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले में दखल देने से इंकार कर दिया। 

 यह अधिकार यात्रियों के लिए जितना सुविधाजनक है, उतना ही रेलवे और पुलिस के लिए मुश्किल भरा। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि इसकी जानकारी यात्रियों को नहीं है, और न ही इस जानकारी को उन तक पहुंचाने के लिए कोई कारगर कदम उठाए गए हैं। 

ट्रेन में चोरी होने के बाद रिपोर्ट दर्ज कराते वक्त पीड़ित को इस बारे में पुलिस द्वारा जानकारी नहीं दी जाती।

 हालांकि जबलपुर जी.आर.पी. का कहना है कि 1 अप्रैल, 2014 के बाद यह आदेश जारी हुआ और 6 माह बाद यानि सितम्बर से अब तक एक भी मामले नहीं आए। 

6 माह करना होगा इंतजार चोरी गए सामान को तलाशने के लिए जी.आर.पी. के पास 6 माह का वक्त होगा। इस दरमियान यदि पुलिस पीड़ित का सामान नहीं तलाश पाती तो वह उपभोक्ता फोरम जा सकता है| 

इसके लिए एफ.आई.आर. दर्ज कराते समय पुलिस को पीड़ित से उपभोक्ता फोरम फार्म भरवाना होगा।

 ओरिजनल कॉपी पीड़ित के पास होगी, और पुलिस कार्बन कॉपी अपने पास रखेगी। एफ.आई.आर. और फार्म ही यात्री का मूल दस्तावेज होगा, जिसके आधार वह केस दर्ज कराएगा। 

ये हैं आपके अधिकार यह सुविधा सिर्फ स्लीपर या ए.सी. कोच में रिजर्वेशन कराने वाले यात्रियों के लिए है।

उपभोक्ता फोरम के जानकार एडवोकेट  बताते हैं कि रिजर्वेशन के दौरान यात्री से 2 रुपए सुरक्षा शुल्क लिया जाता है। इधर ट्रेन में स्लीपर कोच यात्री को दिया जाता है, जिसके बाद यह तय होता है कि आपने उसे ट्रेन में सोने का अधिकार दिया है और इस दौरान जो भी घटना होती है, उसका जिम्मेदार रेलवे ही होगा। ट्रेन के स्लीपर या एसी कोच में यात्रा करते समय यात्री का सामान चोरी होता है तो शिकायत दर्ज करते वक्त उससे उपभोक्ता फोरम का फार्म भरवाया जाता है। यदि 6 माह तक पुलिस उसका सामान नहीं तलाश पाती तो वह फार्म की कॉपी ले जाकर उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज कर सकता है, जहां पर रेलवे को पीड़ित का हर्जाना देना होगा।


 Centralised numbers released by Indian Railways for citizen convinience
"

9760534983 : टीटीई, आरक्षण और भोजन
9760500000 : साफ-सफाई
9760534057 : कोच में समस्या
9760534060 : बिजली से जुड़ी समस्या
9920142151 : इंक्वायरी की समस्या
9760534063 : आरपीएफ एवं सुरक्षा
9760534069 : पेयजल व्यवस्था
9760534073 : चिकित्सा

Wednesday 29 November 2017

रिफाइंड ऑयल सोच समझकर ही खाएं यह जानलेवा हो सकता है

सबसे ज्यादा मौतें देने वाला भारत में कोई है l 
तो वह है... 
रिफाईनड तेल

 केरल आयुर्वेदिक युनिवर्सिटी आंफ रिसर्च केन्द्र के अनुसार, हर वर्ष 20 लाख लोगों की मौतों का कारण बन गया है... रिफाईनड तेल

आखिर भाई राजीव दीक्षित जी के कहें हुए कथन सत्य हो ही गये! 

रिफाईनड तेल से DNA डैमेज, RNA नष्ट, , हार्ट अटैक, हार्ट ब्लॉकेज, ब्रेन डैमेज, लकवा शुगर(डाईबिटीज), bp नपुंसकता ,कैंसर ,हड्डियों का कमजोर हो जाना, जोड़ों में दर्द,कमर दर्द, किडनी डैमेज, लिवर खराब, कोलेस्ट्रोल, आंखों रोशनी कम होना, प्रदर रोग, बांझपन, पाईलस, स्केन त्वचा रोग आदि!. एक हजार रोगों का प्रमुख कारण है।

रिफाईनड तेल बनता कैसे हैं।


बीजों का छिलके सहित तेल निकाला जाता है, इस विधि में जो भी Impurities तेल में आती है, उन्हें साफ करने वह तेल को स्वाद गंध व कलर रहित करने के लिए रिफाइंड किया जाता है
वाशिंग-- वाशिंग करने के लिए पानी, नमक, कास्टिक सोडा, गंधक, पोटेशियम, तेजाब व अन्य खतरनाक एसिड इस्तेमाल किए जाते हैं, ताकि Impurities इस बाहर हो जाएं |इस प्रक्रिया मैं तारकोल की तरह गाडा वेस्टेज (Wastage} निकलता है जो कि टायर बनाने में काम आता है। यह तेल ऐसिड के कारण जहर बन गया है। 

Neutralisation--तेल के साथ कास्टिक या साबुन को मिक्स करके 180°F पर गर्म किया जाता है। जिससे इस तेल के सभी पोस्टीक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

Bleaching--इस विधी में P. O. P{प्लास्टर ऑफ पेरिस} /पी. ओ. पी. यह मकान बनाने मे काम ली जाती है/ का उपयोग करके तेल का कलर और मिलाये गये कैमिकल को 130 °F पर गर्म करके साफ किया जाता है! 


निकेल एक प्रकार का Catalyst metal (लोहा) होता है जो हमारे शरीर के Respiratory system,  Liver,  skin,  Metabolism,  DNA,  RNA को भंयकर नुकसान पहुंचाता है। 

रिफाईनड तेल के सभी तत्व नष्ट हो जाते हैं और ऐसिड (कैमिकल) मिल जाने से यह भीतरी अंगों को नुकसान पहुंचाता है। 

जयपुर के प्रोफेसर श्री राजेश जी गोयल ने बताया कि, गंदी नाली का पानी पी लें, उससे कुछ भी नहीं होगा क्योंकि हमारे शरीर में प्रति रोधक क्षमता उन बैक्टीरिया को लडकर नष्ट कर देता है, लेकिन रिफाईनड तेल खाने वाला व्यक्ति की अकाल मृत्यु होना निश्चित है! 

दिलथाम के अब पढे

*हमारा शरीर करोड़ों Cells (कोशिकाओं) से मिलकर बना है, शरीर को जीवित रखने के लिए पुराने Cells नऐ Cells से Replace होते रहते हैं नये Cells (कोशिकाओं) बनाने के लिए शरीर खुन का उपयोग करता है, यदि हम रिफाईनड तेल का उपयोग करते हैं तो खुन मे Toxins की मात्रा बढ़ जाती है व शरीर को नए सेल बनाने में अवरोध आता है, तो कई प्रकार की बीमारियां जैसे* -— कैंसर *Cancer*,  *Diabetes* मधुमेह, *Heart Attack* हार्ट अटैक, *Kidney Problems* किडनी खराब, 
*Allergies,  Stomach Ulcer,  Premature Aging,  Impotence,  Arthritis,  Depression,  Blood pressure आदि हजारों बिमारियां होगी।*

 रिफाईनड तेल बनाने की प्रक्रिया से तेल बहुत ही मंहगा हो जाता है, तो इसमे पांम आंयल मिक्स किया जाता है! (पांम आंयल सवमं एक धीमी मौत है) 

*सरकार का आदेश*--हमारे देश की पॉलिसी अमरिकी सरकार के इशारे पर चलती है। अमरीका का पांम खपाने के लिए,मनमोहन सरकार ने एक अध्यादेश लागू किया कि, 
प्रत्येक तेल कंपनियों को 40 %
खाद्य तेलों में पांम आंयल मिलाना अनिवार्य है, अन्यथा लाईसेंस रद्द कर दिया जाएगा! 
इससे अमेरिका को बहुत फायदा हुआ, पांम के कारण लोग अधिक बिमार पडने लगे, हार्ट अटैक की संभावना 99 %बढ गई, तो दवाईयां भी अमेरिका की आने लगी, हार्ट मे लगने वाली  स्प्रिंग(पेन की स्प्रिंग से भी छोटा सा छल्ला) , दो लाख रुपये की बिकती हैं, 
यानी कि अमेरिका के दोनो हाथों में लड्डू, पांम भी उनका और दवाईयां भी उनकी! 

*अब तो कई नामी कंपनियों ने पांम से भी सस्ता,, गाड़ी में से निकाला काला आंयल* *(जिसे आप गाडी सर्विस करने वाले के छोड आते हैं)* 
*वह भी रिफाईनड कर के खाद्य तेल में मिलाया जाता है, अनेक बार अखबारों में पकड़े जाने की खबरे आती है।*

सोयाबीन एक दलहन हैं, तिलहन नही... 
दलहन में... मुंग, मोठ, चना, सोयाबीन, व सभी प्रकार की दालें आदि होती है। 
तिलहन में... तिल, सरसों, मुमफली, नारियल, बादाम,ओलीव आयल, आदि आती है। 
अतः सोयाबीन तेल ,  पेवर पांम आंयल ही होता है। पांम आंयल को रिफाईनड बनाने के लिए सोयाबीन का उपयोग किया जाता है। 
सोयाबीन की एक खासियत होती है कि यह, 
प्रत्येक तरल पदार्थों को सोख लेता है, 
पांम आंयल एक दम काला और गाढ़ा होता है, 
उसमे साबुत सोयाबीन डाल दिया जाता है जिससे सोयाबीन बीज उस पांम आंयल की चिकनाई को सोख लेता है और फिर सोयाबीन की पिसाई होती है, जिससे चिकना पदार्थ तेल तथा आटा अलग अलग हो जाता है, आटा से सोया मंगोडी बनाई जाती है! 
आप चाहें तो किसी भी तेल निकालने वाले के सोयाबीन ले जा कर, उससे तेल निकालने के लिए कहे!महनताना वह एक लाख रुपये  भी देने पर तेल नही निकालेगा, क्योंकि. सोयाबीन का आटा बनता है, तेल नही! 

फॉर्च्यून.. अर्थात.. आप के और आप के परिवार के फ्यूचर का अंत करने वाला. 

सफोला... अर्थात.. सांप के बच्चे को सफोला कहते हैं! 
5 वर्ष खाने के बाद शरीर जहरीला 
10 वर्ष के बाद.. सफोला (सांप का बच्चा अब सांप बन गया है. 
15 साल बाद.. मृत्यु... यानी कि सफोला अब अजगर बन गया है और वह अब आप को निगल जायगा.!*

पहले के व्यक्ति 90.. 100 वर्ष की उम्र में मरते थे तो उनको मोक्ष की प्राप्ति होती थी, क्योंकि.उनकी सभी इच्छाए पूर्ण हो जाती थी।

और आज... अचानक हार्ट अटैक आया और कुछ ही देर में मर गया....?
उसने तो कल के लिए बहुत से सपने देखें है, और अचानक मृत्यु..?
अधुरी इच्छाओं से मरने के कारण.. प्रेत योनी मे भटकता है। 

राम नही किसी को मारता.... न ही यह राम का काम!
अपने आप ही मर जाते हैं.... कर कर खोटे काम!!
गलत खान पान के कारण, अकाल मृत्यु हो जाती है! 

सकल पदार्थ है जग माही..!
कर्म हीन नर पावत नाही..!! 
अच्छी वस्तुओं का भोग,.. कर्म हीन, व आलसी व्यक्ति संसार की श्रेष्ठ वस्तुओं का सेवन नहीं कर सकता! 

तन मन धन और आत्मा की तृप्ति के लिए सिर्फ ओलीव आयल ,राइस ब्रान , कच्ची घाणी का तेल, तिल सरसों, मुमफली, नारियल, बादाम आदि का तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए! पोस्टीक वर्धक और शरीर को निरोग रखने वाला सिर्फ कच्ची घाणी का निकाला हुआ तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए! 
आज कल सभी कम्पनी.. अपने प्रोडक्ट पर कच्ची घाणी का तेल ही लिखती हैं! 
वह बिल्कुल झूठ है.. सरासर धोखा है! 
कच्ची घाणी का मतलब है कि,, लकड़ी की बनी हुई, औखली और लकडी का ही मुसल होना चाहिए! लोहे का घर्षण नहीं होना चाहिए. इसे कहते हैं.. कच्ची घाणी. 
जिसको बैल के द्वारा चलाया जाता हो! 
आजकल बैल की जगह मोटर लगा दी गई है! 
लेकिन मोटर भी बैल की गती जितनी ही चले! 
लोहे की बड़ी बड़ी सपेलर (मशिने) उनका बेलन लाखों की गती से चलता है जिससे तेल के सभी पोस्टीक तत्व नष्ट हो जाते हैं और वे लिखते हैं.. कच्ची घाणी... 
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       यह व्यापार नहीं,,  स्वास्थ्य की सेवा है,


Monday 27 November 2017

नौकरी और व्यवसाय किस क्षेत्र में होंगे अधिक कामयाब


*👉🏿अगर आप इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आपको नौकरी करनी चाहिए या व्यवसाय तो अपनी हथेली देखिए और जानिए कि आपके लिए नौकरी व्यवसाय में क्या बेहतर और किन क्षेत्रों में आप अधिक सफल हो सकते हैं।*

*👉🏿तस्वीर में दिख रहा लाल रंग हथेली में गुरू का स्थान है जिसे गुरू पर्वत कहते हैं। अगर आपकी हथेली में यह स्थान उभरा हुआ है तो आप शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा कर सकते हैं। प्रबंधन, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, राजनीति, सरकारी क्षेत्र में बड़े अधिकारी, शिक्षक एवं ज्योतिष के क्षेत्र में करियर बनाएं तो आपको जल्दी और बड़ी कामयाबी मिल सकती है।*
*👉🏿हथेली में जहां काला निशान दिख रहा है वह शनि का स्थान है इसे समुद्रशास्त्र में शनि पर्वत कहा जाता है। जिनकी हथेली में शनि पर्वत अधिक उभरा होता है उनका शनि प्रभावशाली होता है। अगर आपकी हथेली में भी ऐसा है तो आप जीवन में सफल तो होंगे लेकिन अधिक परिश्रम करना होगा। कैरियर के मामले में आपके लिए इंजीनियरिंग, शोधकर्ता, वैज्ञानिक, पुरातत्ववेत्ता, फूलों का कारोबार अच्छा रहता है। ऐसे व्यक्ति ठेकेदारी और प्राचीनकलाओं से जुड़ी चीजों में भी कामयाब होते हैं।*
*👉🏿हथेली में जहां आप पीले रंग की बिंदी देख रहे हैं वह सूर्य का स्थान है इसे सूर्य पर्वत कहते हैं। जिनकी हथेली में सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है वह इलेक्ट्रॉनिक्स, विज्ञापन, पेंटिंग, डेकोरेशन, सरकारी नौकरी एवं सरकारी क्षेत्र से जुड़े ठेके का काम करें तो बड़ी कामयाबी मिलती है।*
*👉🏿हथेली में हरे रंग की बिंदी वाला यह स्थान बुध पर्वत कहलाता है। जिनकी दोनों हथेली में यह स्थान अधिक उभरा होता है उनके व्यवसाय में सफल होने की संभावना अधिक रहती है। इस पर्वत के अच्छी स्थिति में होने से बैंकिेग, वाणिज्य, लेखन, पत्रकारिता, वकालत, विज्ञान एवं दवाईयों के कारोबार में कैरियर बना सकते हैं।*
*👉🏿हथेली में नीला रंग वाला स्थान शुक्र ग्रह का स्थान है जिसे शुक्र पर्वत के नाम से जाना जाता है। शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो और उन पर कटी हुई रेखाएं नहीं बन रही हों तो आप विज्ञापन, संगीत, कला, सजावट, रेडिमेड कपड़ों के कारोबार या ब्यूटी इंडस्ट्री में कैरियर बना सकते हैं।*
*👉🏿 हथेली में यह स्थान चन्द्र पर्वत है। जिनकी हथेली में यह स्थान उभरा हुआ होता है और यहां पर जाल एवं कट का निशान नहीं होता है उनका चन्द्रमा प्रबल होता है। ऐसे व्यक्ति संगीत, कला, लेखन, पत्रकारिता, रंग मंच, साहित्य एवं टूर एण्ड ट्रैवल्स के क्षेत्र में कामयाब होते हैं। इन्हें सरकारी क्षेत्र से भी लाभ मिलता है, चाहें तो सरकारी नौकरी के लिए भी प्रयास कर सकते हैं।*


*👉🏿हथेली में यह दोनों स्थान मंगल पर्वत कहलाता है। अंगूठे के नीचे वाला भाग निम्न मंगल और दूसरा स्थान उच्च मंगल कहलाता है। इन स्थानों के उभार और यहां मौजूद रेखाओं से पता चलता है कि आप सेना, पुलिस, सुरक्षा एजेंसी, खेल, जमीन से जुड़ा कारोबार, एवं खनन के क्षेत्र में जल्दी सफल हो सकते हैं।*
*👉🏿अगर हथेली में कोई रेखा हथेली के अंतिम सिरे से चलकर छोटी उंगली तक पहुंचती है तो आप व्यापार जगत में बड़ी कामयाबी हासिल कर सकते हैं। आप बैंकिंग और वाणिज्य के क्षेत्र में भी अच्छा कर सकते हैं।*


*👉🏿मणिबंध से निकलकर सीधी रेखा शनि पर्वत तक पहुंचती है तो इस बात की प्रबल संभावना बनती है कि व्यक्ति नौकरी में सफल होगा। ऐसा व्यक्ति नौकरी से खूब धन कमाते हैं और प्रतिष्ठित होते है* 

क्यों बाधा जाता है मौली धागा


मौली धागा, जिसे हम पूजा के दौरान ब्राह्मण के द्वारा हम अपने कलाई पर बांधते हैं। हमारे धर्म में इस धागे का बहुत महत्त्व है। जो भी मनुष्य पूजा या किसी यज्ञ में बैठता है उसे इस धागे को अपनी दायीं या बाईं कलाई पर बांधना होता है। इस धागे को बांधने से धर्म लाभ के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। आज हम जानेंगे की क्यों मौली धागा बांधा जाता है और इसके क्या लाभ है ?

हमारे शास्त्र के अनुसार मौली धागा या तो 3 धागे वाले या 5 धागे वाले होते हैं। 3 धागे वाले में लाल, पीला तथा हरा होता है। मान्यता है की तीन धागे वाला धागा बांधने से त्रिदेव अर्थात ब्रह्म देव, विष्णु देव और महेश के साथ त्रिदेवियों की कृपा अर्थात माँ सरस्वती, माँ लक्ष्मी और माँ पार्वती की कृपा बनी रहती है। और पांच धागे वाले कलावे को पंचदेव कलावा कहते है। इसमें लाल, पीला, हरा, नीला, तथा सफेद रंग का धागा होता है।

मौली धागा बांधने की धार्मिक मान्यता

१) मौली धागा बांधने से त्रिदेवों और त्रिदेवियों की कृपा प्राप्त होती है। इनकी कृपा से मनुष्य को कीर्ति, बल, धन और बुद्धि प्राप्त होती है और समस्त बुरी शक्तियों का नाश होता है। क्योंकि इसकी प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बली को अमरता प्रदान करने के लिए श्री हरी के वामन अवतार ने  उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।

२) मौली का अर्थ है सबसे ऊपर, जिसका अर्थ सिर से भी है। भगवान शिव की सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसी कारण से इन्हें चंद्रमौली कहा जाता है।

वैज्ञानिक कारण

मौली धागा बांधने के वैज्ञानिक कारण भी है जो ये साबित करते हैं की हमें क्यों ये धागा बांधना चाहिए।

१) मानव संरचना के अनुसार हमारी कलाई नसों के जाल से कवर होता है। अधिकांश नसें इस जगह से ही पास होती है। मौली धागा बांधने से हमारे नसों में स्थित रक्त संचार ठीक रहता है, जो त्रिदोशः अर्थात वात, पित्त और कफ को संतुलित रखता है। इससे हमारे शरीर में इन तीन दोषों से किसी भी तरह की परेशानी नहीं होती है। ये सभी नकारात्मक ऊर्जा को भी ख़त्म करता है।

२) मौली धागा बांधने से गंभीर बीमारियां दूर होती है, जैसे पैरालिसिस, डाइबिटीज, ह्रदय सम्बन्धी रोग इत्यादि। जब हम धागे को अपनी पर बांधते हैं, तब एक्यूप्रेशर के कारण रक्त में किसी तरह की शिथिलता नहीं होती जो हमारे रोग प्रतिरोधक शक्ति को मजबूत और अच्छा बनाये रखती है।

मौली धागा बांधने की विधि

मन जाता है की कलावा (धागा) को केवल तीन बार ही लपेटना चाहिए। पुरुष व् अविवाहित कन्या को सदैव अपने दाहिने हाथ में कलावा बांधना चाहिए तथा विवाहित स्त्रियों को बाएं हाथ में धागा बांधना चाहिए। धागा बांधते वक्त ध्यान रहें की हमारा हाथ मुट्ठी बंधी हो और दूसरा हाथ हमारे शीश पर हो।

धागा हमेशा किसी ब्राह्मण की हाथों ही बंधाना चाहिए क्योंकि मन्त्रों के द्वारा बांधें जाने वाला धागा ज्यादा असर होता है। लेकिन आज के समय में लोग अपने घर पर ही कलावा को बांध लेते है।